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दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान नूरमहल आश्रम में बैसाखीका त्योहार बड़ी श्रद्धा से मनाया गया

जालंधर 15 अप्रैल (रमेश कुमार) बैसाखी के शुभ अवसर पर दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान, नूरमहल आश्रम में एक विशाल समागम का आयोजन किया गया। मंच प्रस्तुति के दौरान स्वामी चिन्मयानन्द जी ने सर्वप्रथम नाथों के नाथ गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी की शरण में आए सभी श्रद्धालुगणों को इस शुभ अवसर पर हार्दिक शुभ कामनाएं दी। इसके बाद साध्वी सर्वसुखी भारती जी एवं महात्मा सुनील जी ने “मित्र प्यारे नू हाल मूरीदा दा कहना” स्वामी यशेश्वरानन्द जी ने जागत जोति जपै निसु बासर” गुरबाणी शबद की ऐसी भावमय संरचना को प्रस्तुत किया, जिसे श्रवण कर सभी आत्मविभोर हो गए।
सत्सगं समागम के दौरान साध्वी मीनाक्षी भारती जी ने बताया कि बैसाख एक पवित्र माह है। भारतीय कालगणना के अनुसार यह वर्ष का द्वितीय माह है। इस माह में चहुँ और हरियाली छा जाती है। सूखे वृक्ष नई कोपलों को प्राप्त करते हैं और प्रकृति उल्लासित व आह्लादित हो उठती है। साध्वी जी ने बताया कि उसी तरह भक्त के जीवन में यह पर्व उसकी आंतरिक हरियाली की तरफ इंगित करता है। जब जीवन में भक्ति, प्रेम एवं समर्पण की नवीन कौपलें फूटती हैं तभी हृदय जगत में बैसाख होता है। ऐसे भक्तिमय भाव निःसंदेह ईश्वरीय अनुभूति से ही संभव है जो कि केवल युगपुरुष तत्वेत्ता संत की शरणागति में ही होता है। क्यूँकि हरी से मिले बिना जीवन कैसे हरा हो सकता है। जब हरी समान संत जीवन में आता है तभी सही मायने में एक साधक की बैसाखी होती है।
इसके पश्चात् स्वामी रामेश्वरानंद जी ने गुरु गोबिंद सिंह जी के द्वारा की गई 1699 में खालसा पंथ की साजना के बारे में बताते हुए कहा कि खालसा शब्द एक सिख धर्म में शुद्ध रूप से अपने गुरु के प्रति समर्पण भाव को प्रगट करता है।

The festival of Baisakhi was celebrated at Divya Jyoti Jagrati Sansthan

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