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दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा बिधिपुर आश्रम में साप्ताहिक सत्संग का आयोजन

जालन्धर 26 मार्च (रमेश कुमार) दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से बिधिपुर स्थित आश्रम,जालंधर में साप्ताहिक सत्संग कार्यक्रम आयोजित किया गया जिसमें गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री मेधावी भारती जी ने संगत को प्रेरित करते हुए कहा कि जब–जब भी वह परम शक्ति किसी महान लक्ष्य को लेकर सतगुरु रूप में अवतरित होती है,तब–तब वह सभी को सेवा का अवसर प्रदान करती है। इस महान लक्ष्य की पूर्ति के लिए पूर्ण सतगुरु साधारण से साधारण जनमानस का भी आह्वान करते हैं। यूं तो वे सर्वसमर्थ हैं। पत्तों से लेकर ब्रह्मांडीय नक्षत्रों तक,सभी उनकी शक्ति से गतिशील हैं। परंतु फिर भी एक शिष्य के कल्याण हेतु वह भिन्न-भिन्न तरीकों से शिष्य को सेवाएं उपलब्ध करवाते हैं। अपने शिष्य के लिए सेवाओं के भंडार खोल देते हैं। ताकि इन सेवाओं के आधार पर वे अपनी कृपा के ऐसे धरातल का निर्माण कर सकें,जिस पर कदम बढ़ा कर शिष्य भवसागर पार हो जाएं। यही कारण था कि साक्षात् नारायण रूप श्री राम एक साधारण केवट से गंगा पार उतारने का आग्रह करते हैं।वही नारायण जिन्होंने वामन रूप में संपूर्ण सृष्टि केवल दो पग में ही माप डाली थी। वे चाहते तो इस गंगा सरिता को स्वयं भी पार कर सकते थे। परंतु यदि वे ऐसा करते तो केवट को ना तो सेवा का अवसर प्राप्त होता और ना ही उसे अविचल भक्ति का वरदान मिल पाता। यह एक शाश्वत नियम है कि जब एक शिष्य सेवा रूपी हल के द्वारा अपने जीवन की भूमि तैयार कर लेता है,तो सतगुरु का कृपा रूपी बादल भी उस पर स्वतः बरस पड़ता है। केवट ने भी जब प्रभु को केवल एक छोटी सी नदी पार करवाई,उस अंश मात्र सेवा के आधार पर प्रभु ने उसका भवसागर पार कराने का दायित्व वहन कर लिया। इसलिए एक शिष्य के लिए सेवा का अवसर प्राप्त होना ही अपने आप में एक उपलब्धि है। सौभाग्यशाली होते हैं वे शिष्य जिनके दामन में सेवा के बेशकीमती रत्न आ गिरते हैं। धन्य हैं वे लोग जो तन–मन–धन से ईश्वर के समान गुरु की सेवा में बलिहारी जाते हैं क्योंकि जो जन्म जन्मांतरों की सतत् साधना सुमिरन व अभ्यास से भी संभव नहीं,वह क्षण भर की गुरु सेवा से सहज ही मिल जाया करता है।

Weekly Satsang organized by Divya Jyoti Jagrati Sansthan in Bidhipur Ashram

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