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दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा बिधिपुर आश्रम में साप्ताहिक सत्संग कार्यक्रम किया गया

जालंधर 19 मार्च  (रमेश कुमार) दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा बिधिपुर आश्रम में साप्ताहिक सत्संग कार्यक्रम किया गया। जिसमें गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज की प्रेरणा को गुरु भक्तों को बताया गया , और उन पर अडिग होकर चलने के लिए प्रेरित किया गया।

 विचारों के दौरान गुरु महाराज जी की शिष्या साध्वी पल्लवी भारती जी ने बताया कि नरेंद्र से विवेकानंद, मुकुंद को योगानंद, मीरा को भक्त मीरा बाई और भाई लहना को श्री गुरु अंगद देव जी बनाने वाला कोई और नहीं ‘गुरु’ ही है । गुरु ऐसा कारीगर है ,जो हर इंसान को गढ़ने में माहिर है। एक ऐसा मल्लाह है जो शिष्य की जीवन नौका को भवसागर में इतनी कुशलता से खेता है कि, वह चंचल उफनती विकराल लहरों पर भी विजय पाकर अपने लक्ष्य को पा लेती है । गुरु एक ऐसा मूर्तिकार है, जो अनगढ़ बेतरतीब पत्थर को परीक्षाओं,परिस्थितियों के छैनी तथा संघर्ष के हथौड़ों की मार से तराशता तो है लेकिन उसे बिखरने नहीं देता। ऐसा कुशल चित्रकार है, जो जीवन के नीरस चित्र में भक्ति के रंगों की अमिट आभा बिखेर देता है । एक ऐसा रंगरेज है, जो शिष्य के सब दाग धब्बों को छुड़ाकर ,उसे खोलते हुए पानी जैसी परिस्थितियों से गुजार कर भक्ति के गहरे रंग में रंग देता है । यह वह रंग है जो मजीठ है , एक बार चढ़े तो उतरता नहीं । गुरु पारस है , जो शिष्य को विशुद्ध कंचन रूप प्रदान करता है । परंतु जिस प्रकार स्वर्ण को शुद्ध होने के लिए अग्नि में तपना पड़ता है , ऐसे ही शिष्य को विषम परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है। गुरु एक ऐसा कुम्हार है , जो शिष्य को ‘भीतर हाथ सहार दे, बाहर मारे चोट’ के सूत्र अनुसार पकाकर भक्ति के मार्ग पर दृढ़ करता है। ऐसे हुनर भरे हाथों मे ही शिष्य का जीवन संवारता है , प्रभु के दर्शन पाकर शाश्वत आनंद से मालामाल हो जाता है। बशर्ते कि उस शिष्य में समर्पण हो। गुरु शिष्य का पवन संबंध समर्पण की नींव पर ही तैयार होता है । नींव जितनी गहरी होगी संबंध उतना ही

प्रगाढ़ होगा । समर्पण के श्रेष्ठ भावों को प्राप्त करने के लिए शिष्य को अपने भीतर एक रण लड़ना पड़ता है। बेकार जाती अपनी हर सांस में सुमिरन बसाना होता है। बिखरते , विषय वासनाओं की और दौड़ते विचारों को बारंबार खींचकर गुरु चरणों में केंद्रित करना होता है। इसी आंतरिक संघर्ष द्वारा शिष्य का अहम भाव स्वाहा होने लगता है और वह धीरे-धीरे गुरु के साथ एक रूप होकर गुरु के चरणों में पूर्णतया समर्पित हो स्वयं का निर्माण करता चला जाता है ।

Weekly satsang program was organized by Divya Jyoti Jagrati Sansthan at Bidhipur Ashram.

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