जालंधर 15 अक्तूबर (रमेश कुमार) दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान, नूरमहल आश्रम में सत्संग समागम एवं भंडारे का आयोजन किया गया। जिसमें स्वामी मनेश्वरानन्द जी ने मंच सञ्चालन के द्वारा उस ब्रह्म शक्ति जो जल, थल, पर्वत, नदियां अर्थात संसार के हर कोने में विद्यमान है, को नमन किया।
सत्संग के दौरान साध्वी तपस्विनी भारती जी ने एक साधक के जीवन में सुमिरन एवं सेवा के महत्त्व को उजागर करते हुए बताया कि धर्म शास्त्रों में आता है कि “सासि सासि सिमरहु” गोबिंद अर्थात एक साधक को अपने हर श्वास में प्रभु के चिंतन में जुड़ना चाहिए। परन्तु आज का इंसान अपने सांसारिक कार्य में इतना संलग्न हो चुका है कि हर श्वांस तो क्या एक पल के लिए भी उसके चित्त में जुड़ना भूल चुका है। साधवी जी ने इसके प्रति चिंता व्यक्त करते हुए बताया कि संसार में उस महाभारत के युद्ध से अधिक कोई भीष्ण कार्य नहीं हो सकता, जिसमें अर्जुन ने युद्ध और सुमिरन एक साथ करते हुए विजय को प्राप्त किया। इसलिए अगर इंसान सांसारिक कार्यों में कुशलता चाहता है तो सर्वप्रथम उसे प्रभु के साथ तारतम्य बनाना होगा।
आगे डॉ. सर्वेश्वर जी ने दशहरे के पर्व के प्रति अवगत कराते हुए बताया कि यह पर्व मात्र असत्य की सत्य पर विजय का समरण ही नहीं करवाता, अपितु यह माता शबरी जी की परीक्षा, जटायु जी के बलिदान, लक्ष्मण के त्याग, भरत के प्रेम, हनुमान जी की सेवा और वानर सेना के सहयोग के प्रति भी समरण करवाता है। उन्होंने बताया कि जब एक साधक सच्चे हृदय से गुरु की भक्ति करता है तो वो भक्त भी गुरु के साथ सदियों तक हनुमान जी के भांति पूजनीय हो जाते हैं।
अंत में “तीन लोक और चारों धाम, बोल रहे हैं जय श्री राम” के भजन से सम्पूर्ण पंडाल राममय हो गया।