नूरमहल 12 दिसम्बर (रमेश कुमार) दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान, नूरमहल आश्रम में रविवार को मासिक सत्संग समागम एवं भंडारे का आयोजन किया गया। श्री आशुतोष महाराज जी के चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कार्यक्रम की शुरुआत गुरु-नमन से की गई। साध्वी सुमेधा भारती जी ने मंच संचालन के दौरान बताया कि एक शिष्य के जीवन में आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रवाहित होना अति आवश्यक है, क्यूंकि यही ऊर्जा है जो व्यक्ति के विचलित मन को शांत कर देती है और नीरसता में रस भर देती है।
सत्संग सभा में साध्वी प्रवीणा भारती जी ने युग निर्माण के प्रगटीकरण के बारे में बताया कि आज तक हमने समाज में भवन निर्माण, पुस्तिका निर्माण इत्यादि के बारे सुना है, किन्तु पूरे विश्व में अगर किसी ने युग निर्माण की बात की है, तो वो केवल श्री आशुतोष महाराज जी ही हैं। युग निर्माण में ईश्वरीय प्रेरणा व्यक्ति के दूषित विचारों का शोधन करती है और उसका भीतर से निर्माण करती है। साध्वी जी ने कहा कि गुरु चाहे तो अपने एक ईशारे से इसी क्षण युग का निर्माण कर सकता है। परन्तु कृपा सिंधु ने इस यात्रा में सभी साधकों को युग निर्माणी सम्बोधित करके ‘मैं ‘ से ‘हम’ के सफर के प्रति प्रेरित किया। क्यूंकि मैं अहंकार का प्रतीक होता है और हम उसी मैं को मार कर सामूहिक ऊर्जा के सहयोग से नए युग का निर्माण करता है।
आगे स्वामी विश्वानंद जी ने बताया कि गुरु के प्रेम में ऐसा आकर्षण होता है कि हर कोई उसकी तरफ खींचा चला जाता है, क्यूंकि यह प्रेम विशुद्ध होता है। लेकिन इस प्रेम में हर उस शिष्य को संघर्ष की परीक्षा से गुजरना पड़ता है जिसने भक्ति मार्ग में कदम रख लिया है। गुरु इस प्रेम में शिष्य के सारे विकार ज्ञान की अग्नि में स्वाहा कर देते हैं क्यूंकि जब तक विकार उसके भीतर हैं तब तक उसका स्वयं से साक्षात्कार नहीं हो सकता। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान, नूरमहल आश्रम में रविवार को मासिक सत्संग समागम एवं भंडारे का आयोजन किया गया। श्री आशुतोष महाराज जी के चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कार्यक्रम की शुरुआत गुरु-नमन से की गई। साध्वी सुमेधा भारती जी ने मंच संचालन के दौरान बताया कि एक शिष्य के जीवन में आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रवाहित होना अति आवश्यक है, क्यूंकि यही ऊर्जा है जो व्यक्ति के विचलित मन को शांत कर देती है और नीरसता में रस भर देती है। सत्संग सभा में साध्वी प्रवीणा भारती जी ने युग निर्माण के प्रगटीकरण के बारे में बताया कि आज तक हमने समाज में भवन निर्माण, पुस्तिका निर्माण इत्यादि के बारे सुना है, किन्तु पूरे विश्व में अगर किसी ने युग निर्माण की बात की है, तो वो केवल श्री आशुतोष महाराज जी ही हैं। युग निर्माण में ईश्वरीय प्रेरणा व्यक्ति के दूषित विचारों का शोधन करती है और उसका भीतर से निर्माण करती है। साध्वी जी ने कहा कि गुरु चाहे तो अपने एक ईशारे से इसी क्षण युग का निर्माण कर सकता है। परन्तु कृपा सिंधु ने इस यात्रा में सभी साधकों को युग निर्माणी सम्बोधित करके ‘मैं ‘ से ‘हम’ के सफर के प्रति प्रेरित किया। क्यूंकि मैं अहंकार का प्रतीक होता है और हम उसी मैं को मार कर सामूहिक ऊर्जा के सहयोग से नए युग का निर्माण करता है। आगे स्वामी विश्वानंद जी ने बताया कि गुरु के प्रेम में ऐसा आकर्षण होता है कि हर कोई उसकी तरफ खींचा चला जाता है, क्यूंकि यह प्रेम विशुद्ध होता है। लेकिन इस प्रेम में हर उस शिष्य को संघर्ष की परीक्षा से गुजरना पड़ता है जिसने भक्ति मार्ग में कदम रख लिया है। गुरु इस प्रेम में शिष्य के सारे विकार ज्ञान की अग्नि में स्वाहा कर देते हैं क्यूंकि जब तक विकार उसके भीतर हैं तब तक उसका स्वयं से साक्षात्कार नहीं हो सकता।दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान, नूरमहल आश्रम में रविवार को मासिक सत्संग समागम एवं भंडारे का आयोजन किया गया। श्री आशुतोष महाराज जी के चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कार्यक्रम की शुरुआत गुरु-नमन से की गई। साध्वी सुमेधा भारती जी ने मंच संचालन के दौरान बताया कि एक शिष्य के जीवन में आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रवाहित होना अति आवश्यक है, क्यूंकि यही ऊर्जा है जो व्यक्ति के विचलित मन को शांत कर देती है और नीरसता में रस भर देती है। सत्संग सभा में साध्वी प्रवीणा भारती जी ने युग निर्माण के प्रगटीकरण के बारे में बताया कि आज तक हमने समाज में भवन निर्माण, पुस्तिका निर्माण इत्यादि के बारे सुना है, किन्तु पूरे विश्व में अगर किसी ने युग निर्माण की बात की है, तो वो केवल श्री आशुतोष महाराज जी ही हैं। युग निर्माण में ईश्वरीय प्रेरणा व्यक्ति के दूषित विचारों का शोधन करती है और उसका भीतर से निर्माण करती है। साध्वी जी ने कहा कि गुरु चाहे तो अपने एक ईशारे से इसी क्षण युग का निर्माण कर सकता है। परन्तु कृपा सिंधु ने इस यात्रा में सभी साधकों को युग निर्माणी सम्बोधित करके ‘मैं ‘ से ‘हम’ के सफर के प्रति प्रेरित किया। क्यूंकि मैं अहंकार का प्रतीक होता है और हम उसी मैं को मार कर सामूहिक ऊर्जा के सहयोग से नए युग का निर्माण करता है। आगे स्वामी विश्वानंद जी ने बताया कि गुरु के प्रेम में ऐसा आकर्षण होता है कि हर कोई उसकी तरफ खींचा चला जाता है, क्यूंकि यह प्रेम विशुद्ध होता है। लेकिन इस प्रेम में हर उस शिष्य को संघर्ष की परीक्षा से गुजरना पड़ता है जिसने भक्ति मार्ग में कदम रख लिया है। गुरु इस प्रेम में शिष्य के सारे विकार ज्ञान की अग्नि में स्वाहा कर देते हैं क्यूंकि जब तक विकार उसके भीतर हैं तब तक उसका स्वयं से साक्षात्कार नहीं हो सकता। monthly-satsang-program-was-organized-at-divya-jyoti-jagrati-sansthan-noormahal-ashram