10 अक्गुतूबर (रमेश कुमार) रुदेव श्री आशुतोष महाराज जी की महती प्रेरणा द्वारा दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान, नूरमहल आश्रम में मासिक सतसंग समागम एवं भंडारे का आयोजन किया गया। ”करूँ नित नित ध्यान” भावपूर्ण प्रार्थना के साथ आंरभ हुए इस कार्यक्रम में स्वामी चिन्मयानन्द जी ने मंच संचालन में बताया कि एक शिष्य के लिए प्रार्थना भावों की सम्पादिका है। कहने का भाव जब एक साधक हृदय से अपने गुरु को याद करता है तो गुरु भी अपने शिष्य के भावों को फलीभूत करने के लिए प्रगट हो जाता है, फिर इसके लिए चाहे उसे प्रकृति के नियमों को ही क्यों न बदलना पड़े। सत्संग प्रवचनों में स्वामी प्रेम जी ने बताया कि जब एक पूर्ण गुरु अपनी शरण में आए जिज्ञासु को शिक्षा देते हैं, तो उसी पल त्रिकुटी में स्थित तृत्य नेत्र जागृत कर देते हैं। इस दिव्य दृष्टि के प्रगट होते ही शिष्य को अपने अंतर जगत में चार पदार्थों की साक्षात् अनुभूति होती है। शिष्य के भीतर दिव्य प्रकाश का दर्शन, अनहद नाद और श्वांसों में आदिनाम का सुमिरन प्रगट हो कर सहस्रदल कमल से अमृत बहता है। इन दिव्यानुभूतियों को पाकर साधक आनंदित हो उठता है। इसी शृंखला में साधवी भद्रा भारती जी ने बताया कि एक साधक को हमेशा याद रखना चाहिए कि सत्य ही उसका लक्ष्य है। इसलिए उसे इधर-उधर देखने की बजाय अपना ध्यान केवल अपने सद्गुरु पर केंद्रित करना चाहिए। जो साधक गुरु के इन वचनों को आत्मसात कर लेता है तो उसे आत्मशक्ति भी महसूस होती है और गुरु की अनंत कृपा भी अपने घट में महसूस होती है, क्यूंकि साधक जानता है कि जिसके आगे मैंने अपना जीवन अर्पण किया है, वो कोई साधारण नहीं अपितु पूर्ण सत्ता है, जिसने मुझे साक्षात् ईश्वर से मिलाया है।
Monthly Bhandara was organized at Divya Jyoti Jagrati Sansthan Noormahal Ashram