11 सितम्बर (रमेश कुमार) दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान, नूरमहल आश्रम द्वारा सेवादारों को समर्पित एक विशेष सत्संग समागम एवं भंडारे का आयोजन किया गया। जिसके अंतर्गत श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी रूपेश्वरी भारती जी ने कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए बताया कि एक सच्चा शिष्य वही है जो किसी फल की चाह को त्याग कर, ईश्वर के साथ जुड़कर, भूत और भविष्य का चिंतन किए बिना स्वधर्म का निर्वाह करता है। यह अवस्था मात्र मन या बुद्धि के संकल्प का तो परिणाम नहीं हो सकती क्योंकि मन बुद्धि ही समस्त इच्छाओं, बंधनो व आसक्तियों का कारण है।
तत्पश्चात स्वामी परमानन्द जी ने बताया कि गुरु सेवा आध्यात्मिक जगत की पद्धति है। इसलिए सेवा का सफर संसार का चश्मा लगाकर तय नहीं किया जा सकता। इसमें सफलता प्राप्त करने के लिए अर्थात एक सच्चा सेवक बनने के लिए आपको अध्यात्म का चश्मा पहनना होगा। संसार का नियम है कुछ किया तो उसके बदले कुछ पाना है। लेकिन अध्यात्म का नियम है- कुछ पाना नहीं खोना ही खोना है। संसार नियम है, ऊंचे मुकाम प्राप्त कर कुछ बनकर दिखाना। लेकिन अध्यात्म का नियम है- कुछ बनना नहीं, मिट जाना है। लेकिन मिटना कौन चाहता है? खोना कौन चाहता है? मात्र वही जो अध्यात्म के मर्म को समझ जाता है। क्योकि यहाँ मिटकर बना जाता है और खोकर सब पा लिया जाता है। कहने का तात्पर्य गुरु सेवा में स्वयं की, अपनी इच्छाओं-कामनाओं-वासनाओं की, अपने अहंकार की, अपने मान-सम्मान-प्रतिष्ठा की तिलांजलि देनी पड़ती है। जो ऐसा कर पाते हैं, गुरु उसमें एक नवीन व्यक्तित्व को गढ़ देते हैं और सच्चा सेवक बना देते हैं।
A special Satsang Samagam dedicated to the sevadars was organized by Divya Jyoti Jagrati Sansthan, Noormahal Ashram.