फ्रंट लाइन (रमेश कुमार) गत दिवस दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के सत्संग आश्रम नूरमहल में भजन संध्या ‘दिव्य गुरु’ का भव्य आयोजन किया गया। सांस्कृतिक पुरोधा गुरुदेव सर्व श्री आशुतोष महाराज जी के कृपा हस्त तले कार्यक्रम का शुभारंभ भारतीय संस्कृति के अनुसार नववर्ष को मनाते हुए समस्त मानव जाति की मंगल कामना के भावों के साथ किया गया। कार्यक्रम को प्रस्तुत करते हुए साध्वी सुश्री जयन्ती भारती जी ने जीवन में संस्कार और संस्कृति के महत्त्व को समझाया गया। उन्होंने कहा कि अध्यात्म आनंद से परिपूर्ण संतुलित जीवन जीने की कला सिखाता है। इसके बिना केवल भौतिक जगत की दौड़ में लगा मानव मन चिंताओं से ग्रस्त रहता है। चिंता से चिंतन की तरफ बढ़ने के लिये ईश्वर दर्शन करवाने वाली एक मात्रा विधि ध्यान ही है। आगामी श्री राम नवमी का पर्व संकल्पित होने की बेला है कि हम जीवन को भोगों की नगरी लंका न बनाते हुए, अयोध्यापुरी बना अपने हृदय में राम का प्राक्टय करवायें। मंच पर उपस्थित साधु-समाज व साध्वियों द्वारा जय श्री राम के जयघोष के साथ श्री राम महिमा का गायन किया गया।
‘साधे सो सत्गुरु मोहे भावे’ भजन के गायन के पश्चात् साध्वी जी द्वारा गुरु के जीवन में महत्व के विषय में समझाया गया। जीवन को सुंदर और शांत बनाने वाले ज्ञान और ध्यान की कला केवल पूर्ण गुरु ही प्रदान करते हैं। जो मानव मन के अज्ञान तिमिर को मिटाकर ज्ञान रश्मियों से जीवन का मंगल घट भर दें, राह को मंजिल तक का सफर दे दें। ऐसे सहपंथी पथ प्रर्दशक केवल दिव्य गुरु ही हो सकते हैं. दिव्य गुरु ही अज्ञनाता की गहन खाई में सुषुप्त पड़ी चेतना में नवप्राण और चेतना को फूंकते हैं। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के संस्थापक गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी मानव में क्रांति और विश्व में शांति के लिए सत्य सनातन ब्रह्मज्ञान का पथ दिखा कर समाज को आगे बढ़ने की प्रेरणा दे रहे हैं। जब प्रत्येक मानव के अंतःकरण में शांति होगी तभी विश्व सही मायनों में शांत हो पाएगा। कार्यक्रम के दौरान ‘चलो बुलावा आया है’ की सुमधुर प्रस्तुति ने उपस्थिति विशिष्ट अतिथियों को मंत्रामुग्ध् कर दिया।
इस कार्यक्रम में आसपास के क्षेत्रा से बड़ी संख्या में भक्त श्रद्धालुगण उपस्थित हुए, उन्होंने दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की विविध् आध्यात्मिक, सामाजिक व सांस्कृतिक गतिविध्यिों के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त की। इस अवसर पर स्वामी परमानंद, स्वामी गिरिधरानंद, स्वामी चिन्मयानंद, स्वामी रामेश्वरानंद, स्वामी हरिवल्लभानंद, स्वामी सर्वानंद, स्वामी सदानंद, स्वामी प्रभुरमणानंद, स्वामी इंद्रेशानंद व अन्य महात्मा उपस्थित थे।