फ्रंट लाइन (रमेश कुमार) दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से मैजेस्टिक रिजॉर्ट, जालंधर में भव्य स्तर पर भजन प्रभात का आयोजन किया। जिसमें सैकड़ों की गिनती में भक्तजनों ने पहुंचकर प्रभु महिमा को श्रवण किया और हाज़री लगाई।
इस अवसर पर श्री आशुतोष महाराज की शिष्या साध्वी जयंती भारती जी के द्वारा अध्यात्मिक उत्थान के लिए ऊर्जा से परिपूर्ण विचारों को प्रदान किया। सुमधुर ढंग से साध्वी जगदीशा भारती, साध्वी शुभा नंदा भारती, साध्वी अखंडज्योति भारती, साध्वी बीना भारती, शब्दप्रिया भारती, साध्वी पल्लवी भारती, साध्वी शशि प्रभा भारती साध्वी रीना भारती, साध्वी श्री त्रिनैना भारती एवं रुपिंदर् भारती के द्वारा भजनों का गायन किया गया।
साध्वी जी ने अपने विचारों में यह बताया कि समाज की आधारभूत ईकाई ‘मानव’ आज एकता, परस्पर सौहार्द और आपसी भाईचारे के महत्त्व को भुला बैठा है। ईर्ष्या, घृणा जैसी कुत्सित भावनाओं का सर्वत्र बोलबाला है। ऐसे में, स्वस्थ समाज की कल्पना करना भी अत्यन्त दुःसाध्य सा प्रतीत होता है।
परन्तु, साथ ही इस सत्य को भी अस्वीकार नहीं किया जा सकता कि वर्तमान सामाजिक विकृतियों के जिम्मेदार हम स्वयं ही हैं। ये घृणात्मक परिस्थितियाँ हमारी अवैज्ञानिक व संकुचित विचारधारा के ही परिणामवश हैं। उदाहरणतः जब एक त्रिशंकु (Prism) में से सफेद प्रकाश की किरणें गुजरती हैं तो सात विभिन्न रंग दिखाई देते हैं। एक साधारण मनुष्य अल्पज्ञताके कारण इन सात रंगों को भिन्न-भिन्न स्रोतों से उत्पन्न मानता है। परन्तु एक वैज्ञानिक जानता है कि ये विभिन्न रंगों की किरणें, सफेद प्रकाश का ही विघटित स्वरूप मात्र हैं। दृष्टिकोण का यही अन्तर एक साधारण इंसान व ब्रह्मज्ञान प्राप्त साधक के बीच भी व्याप्त होता है। साधारण मनुष्य के लिये यह सारा संसार भिन्न भिन्न भाषा-भूषा, रूप-रंग व सम्प्रदायों वाले जीवों का गृहस्थान है। परन्तु एक ज्ञानी भक्त इन विभिन्नताओं में भी अभिन्नता का अनुभव करता है। इन विभिन्न रचनाओं के पीछे उस एक परम स्त्रोत रचयिता का दर्शन करता है।
साध्वी जी ने बताया कि हमारे धार्मिक शास्त्रों में भी ऋषि-मुनियों ने कहा कि संपूर्ण चराचर जगत में ब्रह्म-प्रकाश का अनुभव करना कोई साधारण बात नहीं है। यह केवल गुरु प्रदत्त दिव्य दृष्टि द्वारा ही संभव है। उसी से साधक प्रत्येक कृति में व्याप्त उस एक पारलौकिक सत्ता का दर्शन कर पाता है। श्री कृष्ण जी गीता में उद्घोष करते हैं कि- ‘मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव’ अर्थात् यह सम्पूर्ण जगत सूत्र में मणियों के सदृश मुझमें पिरोया हुआ है।
जो भी इस सार्वभौमिक ब्रह्म सूत्र का साक्षात्कार कर लेता है, उसी के लिए यह सम्पूर्ण जगत एक दिव्य माला और प्रत्येक जीव, इस माला में गुँथी एक मणि के समान हो जाता है। इसीलिये स्वामी विवेकानंद जी का भी यही कहना था कि एक दुर्जन के लिए संसार नरक स्वरूप है। इसके विपरीत एक सज्जन के लिए यह स्वर्ग सदृश ही है। और इससे भी विराट दृष्टिकोण ज्ञानी-भक्त का होता है, जिसके लिए यह संसार साक्षात् उस एक ईश्वर का ही प्रतिरूप बन जाता है। नामदेव, चैतन्य महाप्रभु, मीरा, प्रह्लाद जैसे महान भक्तों ने भी हर कण, हर काया में श्री भगवान के दर्शन किए थे। चैतन्य महाप्रभु जब भी काली घटाओं
को देखते थे, तो उन्हें उनमें भी अपना श्यामल कृष्ण दिखाई देता l यही समदृष्टि व विस्तारित प्रेम की भावना विश्व में शांति व सद्भावना प्राप्त करने का मुख्य आधार है। इन्हीं के द्वारा भेद-भाव की संकीर्ण दीवारें ध्वस्त हो सकती हैं और ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का भाव साकार हो सकता है।
इस कार्यक्रम में संस्थान की ओर से श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्य स्वामी नरेंद्रानंद जी , स्वामी परमानंद जी , स्वामी सजनानंद जी एवं स्वामी राधेश्वरानंद जी विशेष रुप से उपस्थित हुए और कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री बिपन कुमार चौढा जी, धर्मपत्नी अनीता चौढा जी अपने परिवार सहित शामिल हुए ।
Grand Bhajan Prabhat was organized by Divya Jyoti Jagrati Sansthan at Majestic Resort, Jalandhar