फ्रंट लाइन (रमेश, नवदीप) दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से प्राचीन शिव बाड़ी मंदिर, मखदुमपुरा में तीन दिवसीय शिव कथा का आयोजन किया गया।
जिसके प्रथम दिवस के अंतर्गत, श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी आणिमा जी ने मां सती के चरित्र पर प्रकाश डालते हुए कहा जब प्रभु श्रीराम जी नरलीला कर रहे थे तो उस समय भगवान शिव एवं मां सती जी कैलाशधाम की ओर जा रहे थे। उस समय भगवान शिव प्रभु श्रीराम को देख कर उनकी जय जयकार करने लगेl तब मां सती के ह्रदय में उस दृश्य को देख कर संशय आ गया भगवान शिव बार बार समझाते हैं
कि लेकिन वो समझना नहीं चाहते l प्रभु ने मां सती को कहा कि ठीक है सती यदि तुम्हारे मन में संदेह है तो तुम जाकर उनकी परीक्षा ले सकती हो ,मां सती परीक्षा लेने गई मां सीता का रूप का रूप धारण किया जिसके कारण प्रभु उनका परित्याग कर देते हैं उस समय सती जी को पश्चाताप हुआ। यहां बहुत बड़ी शिक्षा मानव को मिल रही है। भगवान की लीला को एक इंसान अपनी बुद्धि के द्वारा नहीं समझ सकता क्यूंकि हमारे ग्रन्थ kehte हैं कि प्रभु बुद्धि के धरातल से कोसों दूर हैं ।यदि उसे समझना है तो अंतर ह्रदय की यात्रा करनी पड़ेगी क्योंकि भगवान मानने का विषय नहीं है ।
बहुत से लोग कहते हैं हम प्रभु को मानते हैं हर कोई व्यक्ति अपने भावों से प्रभु को प्रसन्न करना चाहता है, लेकिन संत महापुरुष कहते हैं भगवान मानने का विषय नहीं है उसे देखा जा सकता है ।हमारी धार्मिक ग्रन्थों में ऋषियों ने इस बात को प्रमाणित किया है कि भगवान हमारे भीतर है जैसे एक युक्ति के द्वारा हम लकड़ी में से अग्नि प्रगट करते हैं ठीक वैसे ही एक युक्ति के द्वारा मानव अपने घट में प्रभु को देखता है मानव को उस युक्ति से अवगत एक गुरु करवाता है ग्रन्थों में वर्णन आता है एक पूर्ण गुरु भगवान की कहानियां सुनाने के पश्चात एक जिज्ञासु के मस्तक पर हाथ रख उसका तीसरा नेत्र खोल कर उसके भीतर उस प्रकाश स्वरूप भगवान शिव का दर्शन करवाते हैं ।फिर एकभक्त की शाश्वत भक्ति प्रारम्भ होती है।
A three-day Shiva Katha was organized by Divya Jyoti Jagrati Sansthan at the ancient Shiv Bari Temple, Makhdumpura