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दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से सप्ताहिक सत्संग कार्यक्रम बिधिपुर आश्रम में आयोजित किया गया

फ्रंट लाइन (रमेश कुमार) दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से सप्ताहिक सत्संग कार्यक्रम बिधिपुर आश्रम में आयोजित किया गया। जिसमें श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी संदीप भारती जी ने अपने प्रवचनों में कहा एक साधक वही है जो अपने साध्य को साधने की साधना में रत रहता है । साध्य तक के इस सफर में साधक का सबसे विश्वसनीय साथी होता है उसका संकल्प ! संकल्प है तो ऊर्जा का संचार है , संकल्प है तो अथक परिश्रम है प्रयास है ! संकल्प है तो सतत परिवर्तन है, संकल्प है तो अवरोध में भी रहा है ! हर विरोध में भी उत्साह है ।
जब एक बीज अंकुरित होने का संकल्प धारण करता है तो धरती की कठोरता नहीं देखता ,आंधियों के वेग को नहीं देखता, सूरज के बरसते अंगारे नहीं देता ।वह तो बस सतत संघर्ष कर अपना सर्वस्व न्योछावर कर धरती का वक्त चीर कर सिर उठाकर बढ़ना जानता है। एक नदी जब समुद्र मिलन का संकल्प धारण कर लेती है तो विरोधी चट्टानों को नहीं देखती ,शीला खंडों से टकराव नहीं देखती, जल कणों को सुखा देने वाली प्रचंड उष्णता नहीं देखती वह तो बस अथक अनवरत अपनी धुन में बहना जानती है।
 यही संकल्प वान साधक की कहानी है। सिर्फ संकल्प अन्य कोई विकल्प नहीं ,यही धुन धारण कर एक साधक साध्य की और सतत चलता है। हनी बाल कहते थे_ मैं राह ढूंढ लूंगा या फिर नई रहा बना लूंगा पर चलना नहीं छोडूंगा ।ऐसा होता है एक साधक का अटूट संकल्प ।स्वामी विवेकानंद जी कहा करते थे_हे साधकों एक लक्ष्य निर्धारित करो और फिर उस लक्ष्य को अपना जीवन बना लो ,उसी को सोचो उसी के सपने लो ,उसी को जियो ,तुम्हारा मस्तिष्क , मांसपेशियां ,नस नाड़ियों, देह का पोर_पोर, उस लक्ष्य से भरपूर हो ।उसके अलावा अन्य कोई विचार तुम्हे स्पर्श तक ना करें । यह संकल्प की रहा है, इस संकल्प की राह से गुजर कर महान लोगों और युग पुरुषों का गठन हुआ। गौतम ने बोधि वृक्ष के नीचे संकल्प धारण किया था चाहे मेरी अखियां सूख जाए रगो में रक्त की एक बूंद शेष ना बचे पर मैं डाटा रहूंगा।
इसलिए समाज को निर्वाण_ प्राप्त महात्मा बुद्ध मिले। संस्कृति पुरुष चाणक्य जी ने संकल्प लिया था “खंड _खंड भारत को संगठित करके रहूंगा” इस संकल्प की ताल पर अखंड भारत का सपना पूरा हुआ । स्वामी विवेकानंद जी ने संकल्प धरा की मैं मां भारती की संस्कृति खुशबू को विश्व के प्रांगण में महकाऊंगा। यही हुआ ,पाश्चात्य सभ्यता पर बड़ी शान से हमारी संस्कृति विजय पताका लहरा उठी ।इसीलिए जीवन में संकल्प को धारण करना बहुत जरूरी है। संकल्पवान एक शिष्य ही अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। अंत में साध्वी जी पल्लवी भारती जी ने सुंदर भजनों का गायन किया।

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