फ्रंट लाइन (रमेश,नवदीप) दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान, नूरमहल आश्रम में मासिक भंडारे का आयोजन किया गया। भंडारे की शुरूआत सुमधुर प्र्राथना के साथ की गई। स्वामी परमानंद जी ने मंच का संचालन करते हुए बताया कि मानव की जिंदगी गुरु के बिना अधूरी है। गुरु के बिना अध्यात्म व भक्ति की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
आगे श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी शुभ्रा भारती जीे गुरू रूपी माँ की महानता बताते हुए कहा कि माँ का स्थान जीवन में सबसे बड़ा होता है। माँ संतान की प्रथम गुरु होती है। वह अपने शिशु का शारीरिक, मानसिक विकास करती है, लेकिन हमारे ग्रंथों में कहा गया है कि वही माँ महान है, जो अपनी संतान का आध्यात्मिक विकास करने में भी योगदान देती है।
धन्य हैं वे माताएं जो स्वयं एक पूर्ण सद्गुरु के सान्निध्य को प्राप्त कर, आध्यात्म के द्वारा स्वयं का जीवन तो संवारती ही है, लेकिन अपनी संतान को भी गुरु माँ का सान्निध्य सुख प्राप्त करवाती हैं। कहा जाता है कि एक माँ से बढ़कर कोई हमारा कल्याण नहीं कर सकता, लेकिन अगर एक भक्त के लिए मां से बढ़कर दुनिया में कोई है तो वह गुरु रूपी माँ है, जो उसके सुख में उससे भी ज्यादा प्रफुल्लित और दुख में उससे भी ज्यादा विचलित हो उठती है।
इसके पश्चात् डॉ सर्वेश्वर जी ने बताया कि आज वैज्ञानिक युग में मानवीय बुद्धि ने अनगिनत आविष्कार किए हैं, जिन्होंने नि:संदेह जीवन को सुविधपूर्ण और साधन-संपन्न किया है। लेकिन दुर्भाग्वश इस उन्नति का एक अंधकारमय पक्ष भी है। हमने आज अंतरिक्ष में ऊंची उड़ान भरना तो सीख लिया, लेकिन हमारे मानवीय मूल्य पाताल की अतल गहराईयों में धंस गए हैं। आज सारा संसार घृणा, द्वेष, वैमनस्य, ईष्र्या इत्यादि दुर्भावना से त्रस्त है। प्रेम, दया जैसे सद्गुण मानों श4दकोष तक ही सिमट कर रह गए है। आज समाज को विनाश से केवल तभी बचाया जा सकता है जब उसकी भ्रष्ट हुई बुद्धि को विवेक का सुदृढ़ आधार मिलेगा। यही कारण है कि भारतीय संस्कृति में कोई भी शुभ कार्य आरंभ करने से पूर्व भगवान गणपति के पूजन का प्रावधान है,योंकि श्री गणेश जी विवेक के देवता हैं। लेकिन इस विवेक को केवल ब्रह्मज्ञान के द्वारा ही पाया जा सकता है, जो केवल पूर्ण सद्गगुरु के द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है।
ब्रह्मज्ञान की ध्यान साधना में तपकर बुद्धि निश्चित ही कल्याणकारी सद्बुद्धि में परिणत हो पाती है। इस अवसर पर बनें विवेकी सन्तान तुम्हारी, सतगुरु ऐसा हमको वर दो प्र्राथना का गायन कर के संगत को निहाल किया गया।Monthly Bhandara organized at Divya Jyoti Jagrati Sansthan, Noormahal Ashram