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दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से श्री गुरु रविदास महाराज जी के 645वे  प्रकाश उत्सव पर  श्री गुरु रविदास मंदिर (बस्ती नौ )में दो दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया गया ।

फ्रंट लाइन (रमेश, नवदीप) इस अवसर पर  श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी शशि प्रभा भारती जी ने अपने प्रवचनों के माध्यम से लोगों का मार्गदर्शन करते हुए कहा,कि श्री गुरु रविदास महाराज जी ने दुखी समाज एवं जुल्मों से प्रताड़ित और पीड़ित लोगों को एक नया जीवन संदेश दिया ।वह जात-पात ,ऊंच-नीच का खंडन करने वाले, कर्मशील ,साधना लीन ,एवं  ब्रह्म स्वरूप संत थे। वह समाज सुधारक ,परिवारिक एवं सामाजिक मर्यादाओं के रक्षक, दीन दुखियों के रहनुमा, लोक परलोक के को जानने वाले एवं महान कवि मनीषी थे।
साध्वी जी ने कहा अध्यात्मिक जगत हमारी बौद्धिक और मानसिक क्षमताओं से बहुत परे है। इस मार्ग पर चलना आरंभ करने के लिए आवश्यक है कि हम पूर्ण सतगुरु की खोज करें ।अन्यथा यात्रा जोखिम से खाली नहीं है। हमारे आंतरिक आध्यात्मिक जगत से गुरु पूर्णता परिचित होते हैं अंततः वही हमें उसकी अंतिम मंजिल तक ले जा सकते हैं यदि हम किसी अनजानी जगह पर जाना चाहते हैं तो क्या करना चाहिए । बुद्धिमानी इसी में है कि हम एक ऐसे व्यक्ति की तलाश करें जो उस जगह के बारे में अच्छी प्रकार से जानता है। किसी विज्ञान जा व्यवसाय में कुछ कुशलता हासिल करने के लिए भी हमें एक सुयोग्य शिक्षक की आवश्यकता होती है।
On this occasion, Sadhvi Shashi Prabha Bharati, the disciple of Shri Ashutosh Maharaj Ji, gave his discourses
फिर अध्यात्म विज्ञान के लिए गुरु की शरण में जाना क्या उचित नहीं है ? हमारे सभी धर्म शास्त्र ऐसे अध्यात्म विशेषज्ञ गुरु का अभिनंदन करते हैं। जो प्रत्यक्ष रूप से हमारे भीतर ही परमात्मा का बोध करा सके। भीतर ईश्वर का दर्शन करा देने का दिव्य सामर्थ्य सच्चे गुरु को पहचाने कि सही कसौटी है ।यही ईश्वर के भवन पर दस्तक देने की एक विशिष्ट प्रक्रिया है। सच्चा गुरु शास्त्रों के सैद्धांतिक पक्ष तक ही सीमित नहीं होता। वह तो प्रायोगिक पक्ष को भी प्रकट करता है ।हम ईश्वर को प्राप्त करने के लिए उसे तत्व से जानना ही होगा। यह तत्व ज्ञान केवल समसामयिक  सतगुरु ही दे सकते हैं क्योंकि वह ईश्वर का साकार रूप होते हैं  ।
इस अवसर पर साध्वी रणे भारती जी, संदीप भारती जी, रीता भारती जी के द्वारा मधुर भजनों का गायन कर संगत को निहाल किया गया।
On this occasion, Sadhvi Shashi Prabha Bharati, the disciple of Shri Ashutosh Maharaj Ji, gave his discourses

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