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दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान नूरमहल आश्रम में मासिक भंडारे का आयोजन किया गया।

फ्रंट लाइन(रमेश कुमार) दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान, नूरमहल आश्रम में एक विशाल सत्संग सभा व भंडारे का आयोजन किया गया। जिसमें श्री आशुतोष महाराज जी के
शिष्य स्वामी विष्णुदेवानंद जी ने प्रवचनों में बताया कि जब एक शिष्य भक्ति मार्ग का सफर तय करता है तो उसके जीवन में अनेकों ही मुशकिले चुनौति बनकर उसके सामने आकर खड़ी हो जाती है।
लेकिन एक गुरू शिष्य कभी भी इन मुशकिलों की परवाह ना करते हुए साधना के द्वारा अपना
मन गुरू चरणों में जोड़कर गुरू मई हो जाता है अर्थात गुरू भ1ित के रंग में रंग जाता है तो फिर उसका अपना कोई विचार या मत नहीं रहता,
गुरूदेव की इच्छा ही उसकी इच्छा बन जाती है। ऐसा शिष्य खुशी-खुशी हर मुशकिल को स्वीकार करते हुए अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करता
हुआ आगे बढ़ जाता हैं।
साध्वी कालिन्दी भारती जी ने प्रवचनों में बताया कि जब-जब भी हमारे संत महांपुरूष किसी महान लक्ष्य को लेकर इस धरा पर आते हैं तो ऐसी
विकट परिस्थितियाँ उत्पन्न होती है कि महांपुरूषों का कार्य भी असंभव लगने लगता है लेकिन महाँपुरूष जो अपना लक्ष्य लेकर आते हैं, उसे पूर्ण करके ही जाते हैं।
शिष्यत्व के पथ पर ऐसे बहुत से मोड़ आते हैं जो हमें विचलित करते हैं अथाह पीड़ा देते हैं बाहर से शरीरिक दुख: और भीतर
से मानसिक प्रहारों के ज़ख्म देकर। ऐसे में शिष्य मचलता है, रोता है अपने आपको बेसहारा महिसूस करता है और उसके मनमें कई बार ऐसे विचार
आते हैं कि शायद उसके गुरू उसकी पीड़ा से अंजान हैं। लेंकिन जिनके हृदय में अपने गुरू के प्रति अटूट विश्वास होता है कि चाहे कैसी भी परिस्थिति हो उसका गुरू कभी भी उनको अकेला नहीं छोड़ता और यदि कभी ऐसा होता भी है तो गुरू उसके मानसिक और शारीरिक स्तर से सश्क्त
बना रहे होते हैं और उसका ऐसा दिव्य निर्माण कर रहे होते हैं कि आने वाले समय में वह संसार के सामने गर्व से सिर उठाकर खड़ा हो सके।
Monthly Bhandara was organized at Divya Jyoti Jagrati Sansthan Noormahal Ashram

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