फ्रंट लाइन (रमेश कुमार) दिव्य ज्योति जागृति संस्थान द्वारा अमृतसर बाई पास रोड, जालंधर स्थित आश्रम में सत्संग कार्यक्रम का आयोजन किया गया। गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी रणे भारती जी ने मंच संचालन करते हुए कहा, मानव जीवन का उद्देश्य ईश्वर को प्राप्त करना है परंतु ऐसा नही कि हम सांसारिक कर्तव्यों से मुंह मोड़ लें बल्कि सांसारिक कर्तव्यों को करते हुये ईश्वर की उपासना करना है। साध्वी रीटा भारती जी ने “मैं किंज करां बयान रहमतां तेरियां” मैं नींवीं मेरा सतगुरु उच्चा, उचया नाल मैं लाईआं” आदि भजनों का गायन किया। साध्वी शशि प्रभा भारती जी ने सत्संग किया। प्रवचनों में उन्होंने कहा आत्मा का भोजन सत्संग, स्वाध्याय है। सत्संग जीवन को निर्मल और पवित्र बनाता है। यह मन के बुरे विचारों व पापों को दूर करता है। भतृहरि ने जो लिखा है, उसका आशय है कि ‘सत्संगति मूर्खता को हर लेती है, वाणी में सत्यता का संचार करती है। दिशाओं में मान-सम्मान को बढ़ाती है, चित्त में प्रसन्नता को उत्पन्न करती है और दिशाओं में यश को विकीर्ण करती है। वस्तुत: सत्संगति मनुष्य का हर तरह से कल्याण करती है। जैसे चाशनी के मैल को साफ करने के लिए कुछ मात्रा में दूध डालते हैं, उसी तरह जीवन के दोषों को दूर करने के लिए सत्संग करते हैं। प्रात:काल का भोजन सायंकाल तक और सायंकाल का भोजन रात्रिभर शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है। ऐसे ही सुबह किया हुआ सत्संग पूरे दिन हमें अधर्म और पाप से बचाए रखता है। मानव सत्संग से सुधरता है और कुसंग से बिगड़ता है। कहा भी गया है कि जैसा होगा संग वैसा चढ़ेगा रंग। सत्संग मानसिक समस्याओं की चिकित्सा है। जब मन में काम, क्रोध रूपी वासनाओं की आंधी उठे और ज्ञान रूपी दीपक बुझने लगे, तो ऐसे में सत्संग औषधि का कार्य करता है। विद्वानों का मानना है कि सत्संग से विवेक जाग्रत होता है। विवेक के जाग्रत होने पर ही यह जाना जा सकता है कि क्या अच्छा है और क्या बुरा? क्या नैतिक है और क्या अनैतिक? गुरबाज जी ने तबले पर सेवा निभाई। सत्संग उपरांत सारी संगत को प्रसाद वितरण किया गया। और अंत में सारी संगत ने विश्व कल्याण के लिये ध्यान किया।Satsang was organized by Divya Jyoti Jagrati Sansthan at Bidhi Pur Ashram branch